लम्बे समय से भारत और रूस के बीच में काफी मायनों में खरीद और बेच होती रही है. चीजे कुछ समय पहले तक काफी अधिक सामान्य ही थी लेकिन ये हमेशा वैसी ही रहने वाली नही होती है ये भी हम काफी अधिक अच्छे से जानते है. अगर हम लोग अभी की बात करते है तो दोनों के बीच में व्यापार करना बिलकुल भी आसान नही हो रहा है और बीच में लगे हुए प्रतिबन्ध के कारण से विश्व भर के दिक्कते बढती चली जा रही है जो जाहिर तौर पर होनी भी थी.
भारतीय कम्पनियों को लाभांश नही दे पा रही रूसी आयल कम्पनियां, अमेरिकी प्रतिबंधो का असर
अगर आपको मालूम हो तो रूस में काफी बड़ी बड़ी आयल फील्ड है और इसमें भारत की सरकारी कम्पनियों जैसे इंडियन आयल आदि ने काफी भारी मात्रा में हिस्सेदारी खरीद रखी है. इससे भारत की कम्पनियों को हर साल हजारो करोड़ तक का मुनाफ़ा हो जाता था लेकिन अब रूस को स्विफ्ट सिस्टम से बाहर कर दिया गया है जिसके कारण से वो अपने देश से बाहर पेमेंट नही कर सकता.
ऐसे में धीरे धीरे करके रूस से मिलने वाला लाभांश इकठ्ठा होता जा रहा है और भारत की कम्पनियां अपने खर्चे इस पैसे पर चला रही थी वो स्त्रोत बंद हो चुका है. ये लगभग 9 बिलियन रूबल हो चुका है जिसे भारतीय मुद्रा में गिने तो लगभग एक हजार करोड़ रूपये से भी अधिक हो जाता है.
मजबूरी में बेचनी पड़ सकती है हिस्सेदारी
जिस तरह की स्थिति बनी हुई है और भारत की कई कम्पनियों की हिस्सेदारी की इनकम रूस से आनी बंद हो चुकी है लेकिन खर्चे तो ऐसे ही चल रहे है, ऐसे में हो सकता है भविष्य में मजबूरी में भारत को रूसी कम्पनियों में हिस्सेदारी बेचकर के निकलना भी पड़े क्योंकि अभी कोई भरोसा नही है कि रूस को फिर से कब स्विफ्ट सिस्टम में एंट्री मिलेगी और उसे डॉलर का इस्तेमाल करने की अनुमति मिलेगी.
कही न कही इससे नुकसान तो भारत को हो ही रहा है मगर अब अंतर्राष्ट्रीय स्थितियाँ ऐसी हो चुकी है जिसमे किसी के लिए भी चाहकर के कुछ भी कर पाना संभव नही हो पा रहा है और ये हम अच्छे से देख व समझ सकते है.