भारत में आज की तारीख में लोकतंत्र पूरे तरीके से लागू हो चुका है और जनता अपने प्रतिनिधियों के हिसाब से शासन कर भी रही है लेकिन सही मायनों में अगर हम देखते है तो कई ऐसे क़ानून है जो अपने ही लोगो के खिलाफ नजर आते है और इनको लेकर के अक्सर ही न सिर्फ आम लोग बल्कि बुद्धिजीवी भी सवाल खड़े करते हुए दिखाई देते रहते है कि कम से कम आज की तारीख में देश में इस तरह के क़ानून नही होने चाहिए. अगर हम अभी की बात करे तो सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्णय दिया है.
राजद्रोह के क़ानून पर अंतरिम रोक, फिलहाल कोई केस दर्ज नही हो सकता
सुप्रीम कोर्ट ने भारत देश में फिलहाल के लिए राजद्रोह के क़ानून पर अंतरिम रोक लगा दी है. ये धारा 124ए के तहत दर्ज किया जाता है और समय समय पर सरकारों के ऊपर इसके दुरूपयोग के आरोप भी लगते रहे है. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि अभी केंद्र इस तरह के क़ानून के ऊपर पुनर्विचार करे और जब तक ये नही होता तब तक इस कानून के ऊपर लगी रोक लागू रहेगी.
आखिर क्या है राजद्रोह का क़ानून
भारत में राजद्रोह से जुडा हुआ क़ानून अभी का नही बल्कि अंग्रेजो के समय से चला आ रहा है जो लोगो को अपने स्टेट के विरोध में कुछ भी बोलने से रोकता है. आईपीसी के अनुसार जब भी कोई व्यक्ति लिखित रूप में, बोलकर या फिर किसी सांकेतिक रूप में भी भारत सरकार के खिलाफ अवमानना उत्तेजना आदि फैलाता है और लोगो में असंतोष उत्पन्न करता है तो फिर ऐसा व्यक्ति राजद्रोह का आरोपी माना जाता है.
ये अपने आप में एक गैर जमानती अपराध माना जाता है और इसमें कम से कम तीन साल की सजा से लेकर व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा भी हो सकती है. इस क़ानून में भारत देश के खिलाफ बोलने की बजाय यहाँ की सरकार को निशाने पर लेने वालो को इंगित किया जा रहा है.
कही न कही इसे लोगो के मौलिक अधिकारों और फ्रीडम ऑफ स्पीच में एक रोड़े की तरह देखा गया है और इस कारण से सुप्रीम कोर्ट भी इस पर पुनर्विचार चाह रहा है.