आपको तो मालूम ही होगा कि कृषि क़ानून देश में एक लम्बे समय से काफी बड़ा मुद्दा रहे. सरकार इसे किसानो के रिफोर्म के रूप में लेकर के आगे बढ़ा जा रहा था और ये अपने आप में काफी अधिक महत्त्वपूर्ण भी था. मगर कई कारणों के चलते हुए इन क़ानूनो को वापिस भी लिया गया. अब कई लोग इस पर सरकार के साथ में भी खड़े रहे और कई लोग आलोचना भी कर रहे थे, मगर सवाल अपने आप में बना रहा कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? भाजपा के लोग वक्त वक्त पर उसका जवाब भी देते रहे.
संगठनों को समझाने में विफल रहे, लोगो की जिद से हुए संतुष्ट
जब योगी जी से हाल ही के एक इंटरव्यू में ये सवाल किया गया कि क्या यूपी के चुनावों के चलते हुए कृषि कानूनों को वापिस लिया गया? तो फिर इसके ऊपर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कृषि क़ानून किसानो के हित में लाये गये थे लेकिन किसान संगठनों को और किसानो को सरकार समझाने में कतिपय विफल रही थी जिसके कारण से उन्होंने एक जिद कर ली कि क़ानून वापिस लो.
अब अगर उन्होंने जिद कर ली और उसी से वो संतुष्ट होते है तो फिर यही सही. किसानो के हित में मोदी सरकार ने जो भी काम किये है उतने काम तो किसी और सरकार ने किये ही नही है. यूपी में हमारी सरकार के कामो की तुलना आप पिछली किसी भी सरकार से तुलना करके भी देख ले तो हमारा काम ज्यादा भारी दिखने वाला है.
चुनावों से पहले काफी एक्टिव है योगी
अभी यूपी में चुनाव शुरू होने में लगभग एक हफ्ता ही बाकी रह गया है और इससे पहले सीएम योगी आदित्यनाथ काफी अधिक तीव्रता के साथ में कार्यो को अंजाम दे रहे है और बयान भी उनके काफी अधिक आक्रामक होते है जिसमे वो अपने सरकार द्वारा किये गये कार्यो को सही मायनों में बेहतर दिखाने की कोशिश कर रहे है.
हालांकि कृषि कानूनों को लेकर के जो भी मामला देखा गया है उसके कारण से मोदी सरकार के समर्थक नाराज जरुर हुए है क्योंकि उन्होंने हर स्थिति में सरकार का सपोर्ट किया था, ऐसे में क़ानून कुछ संगठनों की जिद को देखते हुए वापिस लिया जान अपने आप में एक तरह से बैकफुट पर जाने के जैसा रहा.