अभी आपको मालूम तो होगा ही कि अफगानिस्तान में किस तरह के हालात बने हुए है और ये अपने आप में काफी अधिक चिंता में डालने वाले भी है. कही न कही वहां पर रहने वाले आम लोगो का जीना बेहाल हो चुका है और अपने अपने देश के फायदे के अनुसार लोग इसे मान्यता भी देने लगे है. अब फायदा तो फिर हर किसी को चाहिए ही होता है और इस बात में कोई संशय भी नही है, मगर भारत के लिए उसके लोकतांत्रिक मूल्य सबसे अधिक मायने रखते है.
तालिबान को हम एक डिस्पेंसेशन से ज्यादा कुछ नही मानते
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में तालिबान को मान्यता देने को लेकर के ऑस्ट्रेलिया के साथ में चल रही अपनी मीटिंग में पक्ष रखा है जिसमे वो कहते है कि हम तालिबान की सरकार को मान्यता नही देते है और इसे सिर्फ एक डिसपेंसेशन यानी व्यवस्था बनाये रखने वाली चीज के अलावा और कुछ भी नही मानते है. यानी भारत ने अपने फायदे के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता करने से साफ़ तौर पर इनकार कर दिया है.
भारत को स्ट्रेटजिक रूप से नुकसान, मगर फिर भी नही मानेगा
भारत को साफ़ तौर पर नजर आ रहा है कि अफगानिस्तान में मौजूद सरकार से बातचीत न करना अपने आप में काफी बुरा होगा और भारत के इंटरेस्ट को भी नुकसान ही पहुंचाने वाला है, मगर सही मायनों में भारत ने अपने लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों से समझौता करने से पूरी तरह से मना कर दिया है चाहे कुछ भी नुकसान हो जाये.
एस जयशंकर ने अमेरिका में हुए नौ ग्यारह के आतकी घटनाओं का भी जिक्र किया और कहा कि इतिहास में जो कुछ भी हुआ है वो हमारे पास में इस बात का सबूत है और हमें प्रेरित करती है कि इस तरह की व्यवस्थाओं से हम किसी भी प्रकार का समझौता न करे.
हालांकि चीन को इन सब चीजो से फर्क नही पड़ता है और उसने साफ़ शब्दों में कह भी दिया है कि वो तो तालिबान को मान्यता भी दे देंगे, आखिर वो इससे काफी फायदे जो निकालना चाह रहा है.