अभी के लिए अफगानिस्तान में स्थिति कुछ ज्यादा अच्छी है नही. जिस तरह से तालिबान ने अचानक से एक पूरे देश पर ही कब्जा कर लिया है वो विश्व भर को अचंभित कर दे रहा है और ऐसी स्थिति में आगे चीजो को किस तरह से डील करे ये भी किसी को समझ में नही आ रहा है. अगर बात करे अभी की तो हाल ही में भारत के सामने भी पक्ष चुनने की चुनौती आ खड़ी हो गयी है क्योंकि कुछ पता नही है कि तालिबान रहेगा या फिर जनता फिर से लोकतन्त्र लाने में सफल हो जाएगी.
तालिबान पर मान्यता देने पर हुआ सवाल, विदेश मंत्री बोले अभी सिर्फ भारतीयों को निकालना मकसद बाकी समय बतायेगा
जब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से जब इस मामले में सवाल किया गया तो उन्होंने इसका बड़ा ही स्पष्ट जवाब दिया. उन्होंने कहा कि भारत अभी फ़िलहाल तो इन्तजार कर रहा है. अभी हमारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ वहां से भारतीयों को बचाकर के निकलने में है. भारत और अफगानिस्तान के सम्बन्ध हमेशा से ही ऐतिहासिक रहे है और अब आगे समय बतायेगा हमें क्या करना है. अभी तो हम सिर्फ भारतीयों को वहां से निकालने में लगे हुए है.
अभी भारत तालिबान पर नरम नही, अमेरिका के साथ एकजुटता का प्रयास
अभी के लिए भारत की बात करे तो यहाँ की सरकार किसी भी कीमत पर नरम नजर नही आ रही है. अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के साथ जॉइंट बयान में भारत ऐसी किसी फ़ोर्स के साथ में पॉवर में आयी हुई सरकार को मान्यता देने से इनकार कर चुका है मगर निकट भविष्य में क्या इस निर्णय पर बना रहता है या फिर स्ट्रेटजिक इंटरेस्ट की तरफ आगे जाता है ये देखने वाली बात होगी.
भारत के सामने दो ऑप्शन, एक तरफ मानवाधिकार और दूसरी तरफ रणनीतिक फायदा
अब ऐसी स्थिति में भारत के सामने दो ऑप्शन है जिसमे तालिबान को रिकोगनाइज करके वहां से अपने स्ट्रेटजिक फायदों को निकाला जाये जैसा कि चीन हर जगह पर करता है. दूसरा ऑप्शन है कंधार प्लेन घटना और मानवाधिकारों जैसे मुद्दों को लेकर के तालिबान को लात देकर के भगा दिया जाए.
कुल मिलाकर के अभी भारत की तरफ से ना ही है. भारत ने अपने राजनायिको तक को वापिस बुला लिया है जबकि तालिबान ने कहा था कि उन्हें यहाँ पर रहने दो हमसे कोई खतरा नही है. यानी अभी भारत इन पर भरोसा नही करता है और न ही ये लोग करने के लायक है.